Short Moral Stories in Hindi
एक महात्मा साधु की कहानी जो एक शहर से दूसरे शहर और एक गांव से उस गांव में जाया करते थे | एक दिन साधु महात्मा एक गांव जा रहे थे | जाते जाते वहा शाम हो गई थी तब साधु महात्मा ने किसी के घर पर दस्तक दी और उस घर में से मनीष निकला और उसने उस साधु महात्मा की अच्छे से खातिरदारी की रात में साधु ने उसके घर में ही विश्राम किया और उसके आदर सत्कार से वह बहुत प्रसन्न हो गये ओर जाते हुए बोले ।कि तुम दिन दुगुनी और रात चौगुनी तररकी करो वह खुश हुआ और कहने लगा आज जो है वो कल नहीं रहेगा |
साधु को यह बात बड़ी अजीब लगे और वहां से चल दिए कुछ दिनों बाद महात्मा का वापस से गाव आना हुआ तो उन्होंने सोचा कि चलो मनीष से मिलते हुए चले इस बार उन्होंने देखा कि यह क्या मनीष तो ऐसी टूटी फूटी झोपड़ी में रह रहा है जब मनीष से पता चला कि व्यापार में नुकसान हो गया है
और अभी एक जमीदार के यहां नौकरी कर है | लेकिन फिर भी उस टूटी फूटी झोपड़ी में उतने ही मन से उन साधु महात्मा का आदर सत्कार किया और रूखी सुखी जो भी थी उन्हें खिलाया फटी हुई दरी ही सही उसने उस पर उन्हें बैठाया और उन्हें विश्राम करवाया और जाते हुए उन्होंने कहा कि मुझे तुम्हारी स्थिति देखकर बड़ा दुख हुआ |
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पर मैं यह चाहता हूं कि तुम्हारे पास सब धन संपदा हो मनीष फिर मुस्कुरा दिया और कहां
” एक हाल जो हर बार रहता है कल किसी ने नहीं देखा वक्त बदलता रहता है | “
महात्मा के मन में ख्याल आया कि सच्चा साधु तो मनीष है जो जीवन की सच्चाई जानता है और ऐसा सोचकर वह वहां से चले गए और तीसरी बार फिर कुछ सालों बाद महात्मा का आना हुआ तब देखा कि मनीष तो बड़े से राज महल में रहता है
बिल्कुल रजवाड़ों की तरह महात्मा बहुत प्रसन्न हुए और कहा यह सब कैसे हुआ और उसने कहा कि जिस जमीदार के यहां में काम करता था वह मेरे काम से बहुत खुश हुए और उनकी कोई भी संतान भी नहीं थी इसलिए उन्होंने सब कुछ मेरे नाम कर दिया साधु महात्मा उससे बहुत प्रसन्न में थे और जाते-जाते उन्होंने फिर आशीर्वाद दिया
तुम्हारी यह सुख संपन्नता हमेशा बनी रहे और तुम हमेशा खुश रहो मनीष मुस्कुरा दिया और कहने लगा आप अभी तक नहीं समझे साधु ने कहा कि क्या यह भी नहीं रहेगा ? मनीष ने कहा कि या तो यह नहीं रहेगा या फिर यहां पर रहने वाला नहीं रहेगा साधु महात्मा के मन में ख्याल आया कि मनीष जो कह रहा है वह सही तो है ऐसा सोचकर वह फिर वहां से चल दिए और कुछ सालों बाद फिर उनका आना हुआ तो देखा कि महल तो मनीष का वही था पर मनीष नहीं था
वहां पर कबूतर चू चू कर रहे थे और बेटियां शादी करके चली गई थी एक कोने में उसकी बीमार पत्नी बैठी थी और वहां उस महल में अकेली रह गई थी तब साधु के मन में विचार आया कि असली साधु तो मनीष ही था इस बात से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि
किस बात पर इंसान घमंड करता है जो आज है वह कल नहीं रहेगा और जो कल है वह आज नहीं रहेगा और जो कल होने वाला है उसका अंदाजा आपको और हमको भी नहीं |
हम यह सोच कर खुश रहते हैं कि सामने वाला मुसीबत में है और हम मौज में हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि ना तो यह मौज रहेगी ना ही मुसीबत रहेगी | असली इंसान वही है जो हर हाल में खुश रहे और हर हाल में सुखी रहे।