प्राचीनकाल से रंगपंचमी मनाई जाती है । इस पर्व का इतिहास काफी पुराना है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में होली का उत्सव कई दिनों तक मनाया जाता था। जिसकी समाप्ति रंगपंचमी के दिन होती थी और उसके बाद रंग नहीं खेला जाता था। वास्तव में यह त्योहार होली का ही एक रूप है रंग पंचमी होली के 5 दिन बाद मनाई जाती है होली ही सबसे बेस्ट फेस्टिवल है जो कि रंगों का होता है इसी दिन सब एक दूसरे को रंग लगाते हैं और गले मिलते हैं । सभी जगह पर यह त्यौहार बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है ।
रंग पंचमी समाप्त होने के बाद गाजे-बाजे के साथ जुलूस की शक्ल में लोग निकलते हैं इस जुलूस को गेर कहा जाता है। इसमें सभी धर्म व जातियों के लोग शामिल होते हैं। पूरा इंदौर इस दिन विभिन्न रंगों में रंगा नजर आता है और सांस्कृतिक उत्सवों की धूम मची रहती है।
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इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी इस दिन धार्मिक सांस्कृतिक उत्सव आयोजित किये जाते हैं। शहर में गैर निकाली जाती है इसे बड़ी संख्या में लोग देखने जाते हैं
ऐसा माना जाता है के रंग गुलाल वातावरण में व्याप्त होकर रजोगुण तमोगुण जैसी उच्च विनाशकारी शक्तियों को समाप्त और नष्ट करता है |
फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के बाद अगले दिन सभी लोग रंगों से खेलते हैं। रंगों का यह उत्सव चैत्र मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर पंचमी तक चलता है। इसलिये इसे रंग पंचमी कहा जाता है। रंग पंचमी को कण क्षेत्र का खास त्योहार है महाराष्ट्र में तो होली को ही रंग पंचमी कहा जाता है। इसके पीछे की मान्यता यह है कि इस दिन जो भी रंग इस्तेमाल किये जाते हैं या फिर जिन्हें एक दूसरे पर लगाया जाता है, हवा में उड़ाया जाता है उससे विभिन्न रंगों की ओर देवता आकर्षित होते हैं ।
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पौराणिक मान्यता यह भी है कि इससे ब्रह्मांड में सकारात्मक तंरगों का संयोग बनता है व रंग कणों में संबंधित देवताओं के स्पर्श की अनुभूति होती है। इसलिए इस पर्व को देवताओं के रंगों से भरे आशीर्वाद के रूप में भी देखा जाता है।
कहा जाता है कि इस दिन गुलाब का बहुत अधिक महत्व होता है और उसे अपने मस्तक पर लगाया जाता है आज्ञाचक्र पर गुलाल लगाना, पिंड बीज के शिव को शक्ति तत्व का योग देने का प्रतीक है।